दुनिया में जितने भी अनर्थ और पापकर्म होते हैं, वे सब आर्जव धर्म के अभाव में ही होते हैं। जो ऋजु होते हैं, उनके कर्म संस्कार क्षय होते है और जो कुटिल होते हैं, उनके कर्म संस्कार संचित रहते हैं। अत्यधिक छल से उपार्जितही हुई सम्पति अधिक दिन तक स्थिर नहीं रहती है, केवल कर्म बंध होता है। चोर, डाकू आदि में कपट की मात्र अधिक रहती है, लाखों की सम्पत्ति उनके पास आती है, किंतु कभी भी उनका नगर बसा हुआ नहीं देखाा गया है। जो व्यक्ति सरल स्वभावी होता है, उसके घर प्रभूत सम्पत्ति होती है। मायाचारी को दुनिया घृणित दृष्टि से देखती है। हंस और बगुला लगभग एक से लगते हैं, किंतु उन दोनों के स्वभाव में बडा अंतर होता है। यही कारण है कि हंस से लोग प्रेम करते हैं और बगुले से द्वेष करते हैं। आचार्य पद्मनन्दि देव ने कहा है-
मयित्वं कुरूते कृत सकृदपिच्छायाविघांत गुणे-
ष्वाजातेर्यमिनो र्जितेष्विह गुरूक्लेशैः शमादिष्वलम्।
सर्वे तत्र यदासते विनिभृता क्रोधादयस्तत्वत-
स्तत्पापवत येन दुर्गतिपथे जीवश्चिर भ्राम्यति।